मध्य प्रदेश के सीहोर जिले में उगाए जाने वाले शरबती गेहूं की खेती इस वर्ष बेमौसमी बारिश और ओलावृष्टि के कारण गंभीर नुकसान का सामना कर रही है। शरबती गेहूं, जो अपने उत्कृष्ट स्वाद और सोने जैसी चमक के लिए प्रसिद्ध है, इस बार अपनी इस पहचान को खोता नजर आ रहा है। बेमौसमी बारिश और ओलावृष्टि ने न केवल फसल को भौतिक रूप से नुकसान पहुंचाया है बल्कि इसके उत्पादन और गुणवत्ता पर भी गहरा प्रभाव डाला है।
इस वर्ष सीहोर जिले में लगभग 336 हेक्टेयर भूमि पर शरबती गेहूं की बुवाई की गई थी। हालांकि, अचानक आई बेमौसमी बारिश और ओलावृष्टि ने किसानों की मेहनत पर पानी फेर दिया। खेतों में खड़ी फसल को भारी नुकसान पहुंचा और कटाई के बाद रखी गई फसल भी भीग गई, जिससे गेहूं का रंग हल्का काला पड़ने लगा और दाने छोटे हो गए। इसका सीधा असर फसल के उत्पादन और गुणवत्ता पर पड़ा है।
किसानों का कहना है कि इस बार गेहूं का दाना छोटा रहेगा, जिससे उत्पादन में कमी आएगी और चमक पर भी असर पड़ेगा। इससे गेहूं की क्वालिटी घटेगी और बाजार में इसके दाम भी कम मिलेंगे। इसके अलावा, इस वर्ष के गेहूं का इस्तेमाल अगले साल बीज के रूप में नहीं किया जा सकेगा।
किसानों ने सरकार से नुकसान के लिए मुआवजा और बीमा राशि दिए जाने की मांग की है। उनका कहना है कि सरकार को चाहिए कि वह सर्वे कराए और नुकसान की भरपाई के लिए मुआवजा राशि प्रदान करे।
कृषि मौसम विज्ञानी और कृषि विभाग के अधिकारियों ने भी माना है कि मौसम की मार से फसल के उत्पादन और गुणवत्ता पर असर पड़ेगा। उन्होंने किसानों को सलाह दी है कि वे भीगे हुए गेहूं को अच्छे से सुखाएं और फिर मड़ाई करें ताकि उत्पादन और गुणवत्ता को कुछ हद तक बचाया जा सके।
इस घटना ने न केवल किसानों की आजीविका पर प्रभाव डाला है बल्कि यह भी दर्शाता है कि कृषि क्षेत्र मौसम की अनिश्चितताओं के प्रति कितना संवेदनशील है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि कृषि प्रणाली में लचीलापन और स्थिरता लाने के लिए अधिक समर्थन और नवाचार की आवश्यकता है।
अंततः, इस घटना से यह सबक मिलता है कि किसानों को मौसम की अनिश्चितताओं के प्रति अधिक सजग रहने की आवश्यकता है और सरकार तथा कृषि विशेषज्ञों को ऐसी स्थितियों में किसानों की मदद के लिए अधिक प्रभावी उपायों की योजना बनानी चाहिए।