लौकी की फसल में कई बार विभिन्न प्रकार के रोग लग जाते हैं। जो फसल को बर्बाद कर देते हैं अगर आपने इन पर नियंत्रण पा लिया तो आप कद्दू की अच्छी उपज प्राप्त कर सकते हैं।
लौकी की फसल को खराब होने से बचाए
हमारे भारत में लौकी की सब्जी को लोग बड़े ही पसंद से कहते हैं क्योंकि इसमें फाइबर और प्रोटीन भरपूर मात्रा में मौजूद है जो मनुष्य के शरीर के लिए बहुत जरूरी है। लौकी का बेल गर्म तापमान में उगता है। हालांकि यह पौधा कम देखभाल के कारण आसानी से घरों में उगाया जाता है। लेकिन कुछ परिस्तिथियों में लौकी के पौधे में रोग या बीमारी हो जाती है। जिसके कारण वह ठीक तरह से वृद्धि नहीं कर पाता और फल भी नहीं लग पाते है।
आप भी अगर लौकी की खेती करते हैं तो आपको इसमें लगने वाले रोग और कीटों के बारे में जानकारी होनी चाहिए तभी आप इसका उचित उपाय करके ऐसे निपटारा पा सकते हैं। आज के इस आर्टिकल के जरिए हम आपको बताएंगे की लौकी की सब्जी में कौन-कौन से रोग लग जाते हैं और उनसे फसल को कैसे बचाया जा सकता है।
लौकी में लगने वाले रोग
अक्सर किसान वहां पर मात खा जाते हैं जहां पर उन्हें चीज की जानकारी नहीं होती है और वह फसल की बुवाई तक कर लेते हैं। ऐसा ही कद्दू की सब्जी में भी होता है कद्दू हरी होती है इनमें किट भी हरे रंग के लगते हैं जो कई बार किसानों को नजर नहीं आते और वह इसे लापरवाह हो जाते हैं। जिस वजह से सब्जी बर्बाद हो जाती है। इसलिए अगर आप कद्दू की खेती कर रहे हैं तो आपको उसके बारे में जानकारी होना चाहिए कि कद्दू की फसल में किस प्रकार के रोग लगा सकते हैं और इसे कैसे बच सकते हैं। लौकी की फसल में डाउनी फफूंदी, कुकुम्बर मोजेक वायरस, सेप्टोरिया पत्ती का धब्बा और कोणीय पत्ती धब्बा आदि कई सारे रोग है जो लौकी की खेती में लगते है। यह लौकी की फसल को खराब कर देते हैं।
सेप्टोरिया पत्ती का धब्बा
लौकी में रोग के प्रारंभिक लक्षण पत्तियों पर छोटे गहरे पानी से लथपथ धब्बे होते हैं। जो शुष्क परिस्थितियों में मटमैले से सफेद रंग में बदल जाते हैं। घावों में पतली भूरे रंग की सीमाएँ विकसित हो जाती हैं। और केंद्र भंगुर हो सकते हैं। इससे पौधों को बचाने के लिए इनोकुलम के निर्माण को रोकने के लिए हर 2 साल में खीरे को अन्य फसलों के साथ मिलाया जाना चाहिए। कटाई के बाद फसल के अवशेषों को हटाकर नष्ट कर देना चाहिए।
डाउनी फफूंदी
लौकी के पत्तो की ऊपरी सतह पर हल्के पीले या हरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। जो बाद में भूरे रंग में बदल जाते हैं। हलाकि अक्सर कोणीय पत्तो वाले स्थान को यह कवक रोग समझ लिया जाता है। लेकिन इनके बीच बहुत कम अंतर होता है। फसल कोई से बचने के लिए जिन पौधों में यह रोग लगे हैं उन्हें निकाल कर फेंक दें।
कोणीय पत्ती धब्बा
पत्तियों पर पानी से लथपथ छोटे-छोटे घाव जो पत्ती की शिराओं के बीच फैलते हैं और आकार में कोणीय हो जाते हैं। आर्द्र परिस्थितियों में घावों से एक दूधिया पदार्थ निकलता है। जो सूखकर घावों पर या उसके बगल में एक सफेद परत बना देता है। फसल बर्बाद ना हो इसके लिए रोगमुक्त बीज का प्रयोग करें। उस खेत में पौधे न उगाएं जहां पिछले 2 वर्षों में कद्दूवर्गीय पौधे उगाए गए हों।