भारतीय बीज बाज़ार: संकर बीजों का महत्व और वृद्धि

by Aakash
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परिचय (Introduction)

आनुवंशिक रूप से अधिक विविधतापूर्ण विशेषता (Genetic Diversity)

संकर बीजों की उत्पत्ति का पता 1960 के दशक में भारत की हरित क्रांति से लगाया जा सकता है। भारतीय खाद्य और कृषि परिषद और राष्ट्रीय बीज निगम द्वारा की गई एक अध्ययन से पता चला है कि भारतीय खेती में आनुवंशिक विविधता का स्तर विश्व मानकों से भी अधिक है। यह विविधता विभिन्न प्रकार के फसलों में पाई जाती है, जिनमें सोयाबीन, गेहूं, चावल, मकई, और आदि शामिल हैं। यह विविधता फसलों की रोगबलता, प्रजनन संभावना, और मिट्टी संगठन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

परागकण और पर-परागण (Pollination and Cross-Pollination)

परागकणों के स्थानांतरण को पर-परागण कहा जाता है। परागकण में पौधे अपने बीजों को उत्पन्न करते हैं। यह विभिन्न तत्वों जैसे परागकोष, पराग धारी, और वर्तिकाग्र के माध्यम से होता है। परागकण में एक पौधे के फूल से परागकोष बाहर निकलते हैं और दूसरे पौधे के फूल पर पहुंचते हैं। इस प्रक्रिया में संकर बीज स्थानांतरित होते हैं, जो आनुवंशिक विविधता को बढ़ाते हैं। यह उचित तत्वों के प्रवाह के लिए महत्वपूर्ण है और पौधों के विकास और प्रजनन में मदद करता है।

लाभ

फसल की पैदावार में सुधार (Crop Yield Improvement)

संकर बीजों की लोकप्रियता में पिछले दशकों में काफी वृद्धि हुई है। इन बीजों का उपयोग कृषि सेक्टर में फसल पैदावार को बढ़ाने के लिए किया जाता है। संकर बीजों के उपयोग से फसलों की उत्पादकता में सुधार होता है। ये बीज कम बरसात और कम उपजाऊ भूमि में भी अच्छी पैदावार कर सकते हैं। इससे किसानों को अधिक मुनाफा मिलता है और उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत होती है।

सूखा लचीलापन और कीट प्रतिरोध (Drought Tolerance and Pest Resistance)

संकर बीजों की सूखा लचीलापन और कीट प्रतिरोध की संभावना है। ये बीज अप्राकृतिक मौसम की परेशानियों के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करते हैं। ये पौधे सूखे के दौरान भी अच्छी तरह से अपनी जीवन प्रक्रियाओं को संभाल सकते हैं और फसल की मरीजों के लिए अधिक संरक्षण प्रदान कर सकते हैं। इसके साथ ही, ये बीज कीटों के खिलाफ भी प्रतिरोधी होते हैं और फसलों को कीटों से नुकसान से बचा सकते हैं। इससे किसानों को नकारात्मक प्रभावों से बचाने में मदद मिलती है और फसलों की पैदावार भी बढ़ती है।

आवश्यकता

जनसंख्या में वृद्धि का प्रभाव

जनसंख्या में वृद्धि का प्रभाव कृषि परिदृश्य में परिवर्तन लाता है। बढ़ती जनसंख्या के कारण, कृषि के लिए अधिक खाद्य आवश्यकता होती है और इससे कृषि के प्रयासों पर दबाव बढ़ता है। अधिक जनसंख्या के चलते कृषि के लिए ज़मीन की मांग बढ़ती है, जिससे खेती के लिए अधिक भूमि का उपयोग किया जाता है। इसके परिणामस्वरूप, ज़मीन की उपयोग पर दबाव पड़ता है और भूमि की पुनर्वास की आवश्यकता होती है।

कृषि परिदृश्य में परिवर्तन

कृषि परिदृश्य में परिवर्तन संकर बीजों की लोकप्रियता में योगदान देता है। संकर बीजें विज्ञान और प्रौद्योगिकी के द्वारा विकसित की गई हैं और ये बीज उच्च उत्पादकता और बीमारियों के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करते हैं। इन बीजों का इस्तेमाल करके किसानों को अधिक मात्रा में उत्पादन करने की क्षमता मिलती है और वे अपनी फसलों को बीमारियों से बचा सकते हैं। इसके अलावा, खुले-परागित किस्म (OPV) बीजों का भी उपयोग किया जाता है जो बीज़ों की प्रजातिविशेषता को बनाए रखने में मदद करते हैं। इन परिवर्तनों के कारण, कृषि परिदृश्य में बदलाव आता है और किसानों को उनकी खेती में अधिक सफलता मिलती है

उत्पत्ति (Origin)

भारतीय हरित क्रांति से संबंध (Relationship with Indian Green Revolution)

संकर बीजों की उत्पत्ति का पता 1960 के दशक में भारत की हरित क्रांति से लगाया जा सकता है। इस दौरान, भारतीय खाद्य और कृषि परिषद ने राष्ट्रीय बीज निगम की स्थापना की। राष्ट्रीय बीज निगम भारतीय हरित क्रांति के एक महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में गठित किया गया था। इसका उद्देश्य संकर बीजों की उत्पादन और वितरण को बढ़ावा देना था। भारतीय हरित क्रांति की मदद से बीजों की उत्पादकता बढ़ी और खाद्य उत्पादन में सुधार हुआ। इस तरह, संकर बीजों का महत्वपूर्ण योगदान भारतीय हरित क्रांति के सफलतापूर्वक प्रगति में था।

राष्ट्रीय बीज निगम की स्थापना (Establishment of National Seed Corporation)

वर्ष 1963 में भारतीय खाद्य और कृषि परिषद ने राष्ट्रीय बीज निगम की स्थापना की। इस संगठन का मुख्य उद्देश्य संकर बीजों की उत्पादन और वितरण को सुनिश्चित करना था। यह संगठन समृद्ध और गुणवत्तापूर्ण बीजों की आपूर्ति करता है, जो कृषि उत्पादकता में मदद करता है। राष्ट्रीय बीज निगम के साथी किसानों को उच्च गुणवत्तापूर्ण बीज प्राप्त करने का अवसर प्राप्त होता है, जो उनके उत्पादकता और आय को बढ़ाने में मदद करता है। इस तरह, राष्ट्रीय

भारत में बीज बाज़ार की स्थिति (Status of Seed Market in India)

निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी में वृद्धि (Increase in Private Sector’s Share)

वर्ष 2017-18 में निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी 57.3% से बढ़कर वर्ष 2020-21 में 64.5% हो गई। यह ताकि है की भारत में बीज बाज़ार में निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी में सुधार हुआ है।

भारतीय बीज बाज़ार का मूल्यांकन (Evaluation of Indian Seed Market)

भारतीय बीज बाज़ार में निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी में वृद्धि हुई है। यह वृद्धि भारतीय बीज बाज़ार के मूल्यांकन को दर्शाती है। निजी क्षेत्र ने इस मामले में महत्वपूर्ण योगदान दिया है और बीज बाज़ार के विकास में सक्रिय भूमिका निभाई है।

पूछे जाने वाले प्रश्न

1. क्या है संकर बीज?

संकर बीज एक प्रकार का बीज है जिसका उत्पादन एक ही पौधे की विभिन्न किस्मों के बीच नियंत्रित पर-परागण (Cross-Pollination) करके किया जाता है।

2. संकर बीजों के लाभ क्या हैं?

संकर बीजों के लाभ में फसल की पैदावार में सुधार, सूखा लचीलापन और कीट प्रतिरोध शामिल हैं। ये बीज बाजार में भी महंगे होते हैं।

3. क्या है भारत की हरित क्रांति का संकर बीज से संबंध?

भारत की हरित क्रांति से संबंध संकर बीजों की उत्पत्ति का पता 1960 के दशक में लगाया जा सकता है। यह उत्पादन को बढ़ाकर खाद्य सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

4. क्या है निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी में वृद्धि का प्रभाव?

निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी में वृद्धि का प्रभाव भारतीय बीज बाजार में परिवर्तन लाता है। यह विशेष रूप से बीज के उत्पादन, पैकेजिंग, और वितरण क्षेत्रों में दिखाई देता है।

5. क्या है संकर बीजों की लोकप्रियता में वृद्धि का कारण?

संकर बीजों की लोकप्रियता में वृद्धि का कारण जनसंख्या में वृद्धि का प्रभाव और कृषि परिदृश्य में परिवर्तन है। इसके साथ ही, ये बीज उच्च गुणवत्ता वाली फसलों की खेती को बढ़ावा देते हैं।

 

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