मोटे अनाज की खेती करके बुंदेलखंड का किसान मालामाल हो रहा है। बेहद ही कम लागत में वह तीन गुना अधिक मुनाफा कमा रहा है।
मोटे अनाज की खेती से बदल रहा तकदीर
बहुत सारे किसान अब पारंपरिक फसलों की खेती करने से पीछे हट गए हैं। वह नकदी फसलें या फिर फल सब्जियों की खेती करके अपनी तकदीर बदल रहे हैं। ऐसा ही कुछ बुंदेलखंड में हो रहा है। मध्यप्रदेश के दमोह जिला में रहने वाले किसान बहादुर सिंह लोधी इन दिनों मोटे अनाज की खेती कर रहे हैं।
जो बुंदेलखंड अंचल के एक मात्र ऐसे किसान है, जिन्हें परम्परागत खेती छोड़कर के मोटे अनाज की फसलों की बुवाई कर बंफर पैदावार कर तीन गुना मुनाफा कमा रहे। उनकी तरक्की को देखकर अन्य किस भी उनकी राह पर चलने लगे हैं। आर्टिकल के जरिए हम आपको बताएंगे कि कैसे वह मोटे अनाज की खेती करते हैं और इससे मालामाल हो रहे हैं।
5 साल से कर रहे मोटे अनाज की खेती
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार बहादुर सिंह ने कहा कि मोटे अनाज के बीज तो कृषि विज्ञान केंद्र दमोह से ही निःशुल्क मिल गए थे। जिसकी अलग अलग वेराइटी की बुवाई कर बम्फर पैदावार हो रही है। करीब 5 सालों से वो इन मोटे अनाजो की खेती कर रहे हैं। इन बीजों को हर साल अलग अलग बुवाई के लिए रख लेते हैं। जिसे करने से शून्य लागत इसलिए आई। क्योंकि, बीज निशुल्क मिले,खेतों की जुताई-जिलाई मैंने सालो पुराने अंदाज में हर बखर में बेलों को नहकर की है। इसके अलावा मोटे अनाजो की एकमात्र फसल ऐसी होती हैं,जिसमें कीट नहीं लगते जो अनाज करीब 99.9% शुद्ध होता है। सबसे खास बात यह है कि इनमें किसी प्रकार का कोई कीड़ा भी नहीं लगता है।
पोषक तत्वों से भरपूर है मोटे अनाज
मोटे अनाजों में कई प्रकार के पोषक तत्व पाए जाते हैं। जो सेहत के लिए बहुत ही फायदेमंद है। यही वजह है कि बाजार में उनकी डिमांड भी बहुत रहती है। अनाजो में कई प्रकार के पोषक तत्व पाए जाते हैं। जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होते हैं। इन अनाजों में पर्याप्त मात्रा में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा,एंटी ऑक्सीडेंट गुणो से भरपूर माने जाते है,मोटे अनाज जिनका सेवन करते रहने से आप हष्ट पुष्ट रहेंगे।
किसान बहादुर सिंह लोधी ने कहा कि वे बीते करीब 7 से 8 सालों से कृषि विज्ञान केंद्र दमोह से जुड़े हुए हैं। जिन्होंने मुझे इन मोटे अनाज की फसलों के अच्छी किस्म के बीज निःशुल्क ही उपलब्ध कराये जिसके बाद मैंने इनकी बुवाई कर बम्फर पैदावार ली है। खासतौर पर रागी, बाजरा, कौदो-कुटकी और मक्का की जिले के बाहर भारी डिमांड है।
स्थानीय स्तर पर लोग इन्हें 100 से 150 रुपये प्रति किलो मांगते हैं, जबकि दिल्ली, भोपाल, इंदौर और जबलपुर में इन्हें दोगुनी से तीन गुने दामो पर बेचा जाता है। जिसे ग्राहक खरीदते भी है। जिसे करने में लागत शून्य के बराबर आती है जबकि मुनाफा दो गुना से तीन गुना तक हो जाता है. दरअसल बहादुर के पास पुराने बीज रागी, कुदमा, कुटकी, बाजरा और मक्का के बीच है.जिसकी खेती वे आज भी हर,बखर, 2 बेलों की जोड़ी से करते हैं।